इगास बगवाल पर मुख्यमंत्री ने भी भेलो खेला

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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इगास पर्व पर दून विश्वविद्यालय में राठ जन विकास समिति की और से आयोजन  कार्यक्रम में शामिल हुए। मुख्यमंत्री ने इगास पर्व के शानदार आयोजन के लिये समिति के सदस्यों को बधाई दिया और खुद भेलो खेलकर इस पर्व मे शामिल हुए। इस दौरान मुख्यमंत्री  धामी ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी की और से  माणा गांव के स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा किये गये स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी की प्रशंसा की गई साथ ही  राज्य की माताओं व बहनों के इस काम के  लिए सराहाया जो बहुत अच्छा था । यह हमारी मातृशक्ति का भी  एक बड़ा सम्मान है। मुख्यमंत्री ने कहा को प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने हमारी संस्कृति को भी एक बड़ी पहचान दिलाने का कार्य किया है। उन्होंने द्वारा कहा गया कि हमारे राज्य निर्माण मे हमारी मातृशक्ति का बड़ा योगदान है। अपनी मातृशक्ति के सम्मान के प्रति हम प्रतिबद्ध है।

 

बता दे उत्तराखंड में दिवाली के ठीक ग्यारह दिन बाद इगास बगवाल मनाने की परंपरा है। यह त्योहार मुख्य रूप से उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने में लोग बड़े उत्साह से भाग लेते हैं।

इस त्यौहार के मौके पर लोग पूरी, स्वला और पकोड़े जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं। इस त्योहार के दौरान प्रमुख आकर्षणों में से एक ‘भेलो’ है। भैलो का अर्थ है एक रस्सी जो पेड़ों की छाल से बनाई जाती है। लोग रस्सी के एक तरफ आग लगाते हैं और रस्सी को घुमाकर उससे खेलते हैं। इस फायर प्ले का नजारा बेहद मनोरम होता है। इसके अलावा लोग मोमबत्ती और दीया जलाते हैं। वे ईगास दिवाली से संबंधित स्थानीय गीतों पर बहुत खुशी से गाते और नृत्य करते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान राम के वनवास से अयोध्या लौटने की खबर ऊपरी पहाड़ी क्षेत्रों के निवासियों तक 11 दिन देरी से पहुंची। इसलिए, उत्तराखंड में लोगों ने दीपावली के ग्यारह दिन बाद एकादशी को दिवाली मनाना शुरू कर दिया और इसे ‘इगास दिवाली’ कहा जाने लगा।

यह भी माना जाता है कि गढ़वाल राज्य के राजा महिपत शाह के सेनापति वीर माधो सिंह भंडारी दीपावली के त्योहार पर युद्ध से नहीं लौटे थे। इस खबर से दुखी उत्तराखंड के मूल निवासियों ने दीपावली नहीं मनाई। एकादशी के ग्यारह दिन बाद वे वापस लौटे। लोगों ने महान योद्धा की वापसी को बहुत भव्य और खुशी से मनाया और इस तरह ‘इगास दिवाली’ मनाने की परंपरा शुरू हुई।

हालांकि, अब उत्तराखंड में इगास दिवाली मनाने की संस्कृति कम होती जा रही है। इस खूबसूरत त्योहार को मनाने की परंपरा को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार द्वारा कई पहल की गई हैं।

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