नई दिल्ली। New Covid-19 Omicron : एक तरफ जहां देश और दुनिया में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन (New Covid-19 Omicron) को लेकर खतरा बढ़ता जा रहा है वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि नए वर्ष में ये ओमिक्रोन वैरिएंट नई मुसीबत बन सकता है। एक चैनल से हुई बातचीत के दौरान मेदांता अस्पताल के प्रमुख डाक्टर नरेश त्रेहन ने इस बात की आशंका जताई है। बता दें कि देश में पहले से ही ओमिक्रोन वैरिएंट के करीब 17-20 मामले सामने आ चुके हैं। राजधानी दिल्ली भी अब इससे अछूती नहीं रही है। यही वजह है कि केंद्र सरकार भी इसको लेकर काफी गंभीर है और सभी तरह के एहतियाती कदम उठा रही है।
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लापरवाही बन सकती है खतरनाक
डाक्टर नरेश त्रेहन ने इसकी एहतियात के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना की है। उन्होंने लोगों को ये भी सलाह दी है कि वो अपनी वैक्सीन जल्द से जल्द लगवाएं। उनका कहना है कि वैक्सीन लगने वाले लोगों के इस वैरिएंट की चपेट में आने के बाद भी उसको गंभीर लक्षण सामने नहीं आ रहे हैं। लेकिन जिन लोगों को वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं मिली है उनके लिए ये खतरनाक भी बन सकता है। इसलिए किसी भी सूरत से लापरवाही न बरतें और भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जानें से बचें। उनके मुताबिक ओमिक्रोन वैरिएंट का पहला मामला नवंबर में आने की बात सामने आई है, लेकिन मुमकिन है कि इसकी शुरुआत सितंबर या अक्टूबर में ही हो गई है।
बूस्टर डोज पर विचार कर रही सरकार
डाक्टर त्रेहन का ये भी कहना है कि हमनें डेल्टा के कहर को झेला और देखा है। लोगों ने मास्क को अपने से दूर किया, जिसका खामियाजा देखने को मिला। इसलिए अब ऐसा नहीं करना है। मास्क लगाना बेहद जरूरी है। उनके मुताबिक सरकार इससे एहतियात के लिए बूस्टर डोज पर भी विचार कर रही है। मेडिकल स्टाफ जो फ्रंटलाइन वर्कर है उसको इस खतरे से बचाने की बेहद सख्त जरूरत है।
New Covid-19 Omicron ट्रैवल बैन सही
उनका ये भी मानना है कि जिस वैरिएंट की बात की जा रही है वो दक्षिण अफ्रीका से पहली बार सामने आया था। हालांकि उन्होंने अपने सैंपल को जांच के लिए भेजा था जिसमें इसका खुलासा हुआ। हालांकि इस खुलासे के बाद विभिन्न देशों ने अफ्रीकी देशों पर ही ट्रैवल बैन कर दिया। हालांकि ये फैसला एहतियाती कदमों के मुताबिक सही है। वहींं दूसरी तरफ अफ्रीकी देशों और विश्व स्वास्थ्य संगठन इसको सही नहीं मान रहा है।
बच्चों पर इसके प्रभाव को लेकर सामने आई रिपोर्ट
उन्होंने बताया कि इस वैरिएंट के पांच वर्ष तक के बच्चों पर प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है लेकिन इसकी पुष्टि कर पाना फिलहाल मुश्किल है। इसकी जांच में होने वाली देरी से संबंधित एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि देश में जीनोम सिक्वेंसिंग करने और इसका रिजल्ट आने में 6-7 दिन लगते हैं। इसकी वजह ये भी है कि देश में इसकी लैब की संख्या कम है। इसको बढ़ाने की तरफ कदम बढ़ाया जा रहा है। एक बार लैब की संख्या बढ़ जाएगी तो जांच में तेजी आएगी और रिजल्ट भी जल्द मिल सकेंगे।
इनको अधिक खतरा
डाक्टर नरेश त्रेहन ने इस बातचीत में बताया है कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम है या जो पहले से ही दूसरी बीमारियों से ग्रसित हैं, उनको इसका सबसे अधिक खतरा है। ये कहना कि इसके अभी माइल्ड मामले आ रहे हैं और इसका खतरा कम है कहना गलत है। क्योंकि ये इसके संक्रमण का दायरा डेल्टा से कहीं ज्यादा है। इसके अलावा जिनको वैक्सीन की एक भी खुराक नहीं मिली है वो भी इसके दायरे में आ सकते हैं। ये वैरिएंट जानलेवा भी हो सकता है। इसलिए लापरवाही नहीं बरतनी है।
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