Marital Rape: वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में रखें या नहीं?

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नई दिल्ली। Marital Rape: वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण की मांग वाली विभिन्न याचिकाओं पर बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने खंडित निर्णय सुनाया है। निर्णय सुनाते हुए जहां न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने वैवाहिक दुष्कर्म के अपराध से पति को छूट देने को असंवैधानिक करार दिया। पीठ ने सहमति के बिना अपनी पत्नी के साथ संभोग करने पर पतियों को छूट देने वाली आइपीसी की धारा-375, 376बी के अपवाद-दो को अनुच्छेद-14 का उल्लंघन बताते हुए रद कर दिया।

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धारा-375 का अपवाद-दो संविधान का उल्लंघन नहीं

वहीं, न्यायमूर्ति शकधर के विचारों से असहमति व्यक्त करते हुए न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने माना है कि धारा-375 का अपवाद-दो संविधान का उल्लंघन नहीं करता है, क्योंकि यह समझदार अंतर और उचित वर्गीकरण पर आधारित है।दोनों ही न्यायमूर्ति ने इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं व प्रतिवादियों को उनके निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने की स्वतंत्रता दी है।

सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति राजीव शकधर व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने 21 फरवरी को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। दिन-प्रतिदिन हुई सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि सरकार न तो इसके पक्ष में है और न ही भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के तहत पतियों को दी गई छूट को खत्म करने के खिलाफ है।

वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का निर्देश देने की मांग

तुषार मेहता ने जोर देकर कहा था कि एक संवेदनशील सामाजिक-कानूनी मुद्दा होने के कारण वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण करने की मांग पर ‘समग्र दृष्टिकोण’ लिया जाना चाहिए। गैर सरकारी संगठन आरआइटी फाउंडेशन समेत अन्य याचिकाओं ने याचिका दायर कर वैवाहिक दुष्कर्म (Marital Rape) के अपराधीकरण का निर्देश देने की मांग की थी।केंंद्र ने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध करते हुए कहा था कि इस मामले में विभिन्न हितधारकों और राज्य सरकारों के साथ परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता है।

एक याचिकाकर्ता खुशबू सैफी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कालिन गोंसाल्वेस ने दलील दी थी कि महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा का मामला घर की सीमाओं में है। कभी दर्ज नहीं किया गया और न ही कोई प्राथमिकी है। कितनी बार है कि संस्थागत विवाह के अंदर दुष्कर्म होता है, लेकिन कभी इसका विश्लेषण या अध्ययन नहीं किया जाता है।

उन्होंने दलील देते हुए पीठ को सूचित किया कि याचिकाकर्ता 27 वर्षीय महिला है और उसके पति ने उसके साथ दुष्कर्म किया, इसके कारण उन्हें भयानक चोटें आईं। वैवाहिक दुष्कर्म के मामले होते हैं तो न तो माता-पिता उनकी मदद करते हैं और न ही पुलिस। उल्टा, पुलिस उन पर हंसेगी कि आप कैसे आ सकते हैं और अपने पति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा सकते हैं।

वहीं, गैर सरकारी संगठन आरआइटी फाउंडेशन और आल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की तरफ से पेश हुई अधिवक्ता करुणा नंदी ने दलील दी थी कि वैवाहिक दुष्कर्म का अपवाद को बनाए रखने से दुष्कर्म कानून के पीछे का उद्देश्य समाप्त हो जाएगा, क्योंकि यह एक विवाहित महिला के न कहने का अधिकार छीन लेता है।

उन्होंने कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म अपवाद (Marital Rape) ने विवाह की गोपनीयता को विवाह के भीतर एक व्यक्ति की गोपनीयता से ऊपर रखा है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 15 और 19(1) सहित एक विवाहित महिला को गारंटीकृत कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

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