नई दिल्ली : Coronavirus Third Wave कोरोना के बहुत ही तेजी से फैलने वाले वेरिएंट ओमीक्रोन की दस्तक के बाद भारत अब महामारी की तीसरी लहर (Coronavirus Third Wave) के मुहाने पर खड़ा है। कई एक्सपर्ट पहले ही चेता रहे हैं कि तीसरी लहर तो आकर रहेगी। सरकार के साथ-साथ आम लोगों के स्तर पर उठाए गए एहतियाती कदमों से उसकी गंभीरता को कम किया जा सकता है। इस बीच दो अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के नतीजे बहुत ही सुकून देने वाले हैं। दक्षिण अफ्रीका में हुई एक ताजा स्टडी के मुताबिक ओमीक्रोन कोरोना के पिछले सभी वेरिएंट में संभवतः सबसे कम खतरनाक है। वहीं, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक, ओमीक्रोन शायद कोरोना का आखिरी ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ यानी चिंता बढ़ाने वाला वेरिएंट होगा।
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ओमीक्रोन पिछले सभी वेरिएंट में कम खतरनाक
सबसे पहले बात करते हैं दक्षिण अफ्रीका में हुई स्टडी की। उसके मुताबिक ‘ओमीक्रोन’ कोरोना वायरस के पहले वाले वेरिएंट से कम गंभीर प्रभाव वाला लगता है। ‘ओमीक्रोन’ स्वरूप की पहचान सबसे पहले पिछले महीने दक्षिण अफ्रीका में ही की गई थी और इसके प्रभाव को लेकर व्यापक स्तर पर अध्ययन किया जा रहा है।
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विटवाटर्सरैंड यूनिवर्सिटी में महामारी विज्ञान की प्रोफेसर, शेरिल कोहिन ने बुधवार को ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज’ (एनआईसीडी) की तरफ से आयोजित एक ऑनलाइन चर्चा में ‘दक्षिण अफ्रीका में ओमीक्रोन स्वरूप की गंभीरता का प्रारंभिक आकलन’ शीर्षक वाले एक अध्ययन के परिणाम साझा किए। कोहिन ने कहा, ‘उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र के अन्य देशों में स्थिति कमोबेश समान रह सकती है, जहां पिछले स्वरूपों का खतरनाक असर देखने को मिला था।’ उन्होंने कहा कि उन देशों में स्थिति समान नहीं हो सकती है, जहां पिछले स्वरूपों का असर काफी कम रहा था और टीकाकरण की दर अधिक है। स्टडी के मुताबिक, ओमीक्रोन की वजह से अस्पताल में भर्ती होने की दर कम है। इसके अलावा मरीज के अस्पताल में भर्ती रहने की औसत अवधि भी कम है।
ओमीक्रोन कोरोना का आखिरी ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’
अब बात कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की रिसर्च की, जिसके मुताबिक ओमीक्रोन शायद कोरोना वायरस का आखिरी ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ होगा। यानी मुमकिन है कि ओमीक्रोन के बाद कोरोना का अब कोई ऐसा वेरिएंट पैदा नहीं होगा जो चिंता बढ़ाने वाला हो।
यह विवादास्पद है कि क्या वायरस जीवित होते हैं, लेकिन – सभी जीवित चीजों की तरह – वे विकसित होते हैं। महामारी के दौरान यह तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट हो गया है, क्योंकि हर कुछ महीनों में चिंता के नए रूप सामने आए हैं।
इस बेहतर प्रसार क्षमता को स्पाइक प्रोटीन में बदलाव के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है – स्पाइक प्रोटीन वायरस की सतह पर मशरूम के आकार का उभार होता है- जो इसे एसीई2 रिसेप्टर्स को अधिक मजबूती से बांधने में मदद करता है। एसीई2 हमारी कोशिकाओं की सतह पर रिसेप्टर्स होते हैं, जिनसे जुड़कर वायरस हमारे शरीर में प्रवेश पाने और अपनी संख्या बढ़ाने की प्रक्रिया शुरू करता है।
इन बदलावों ने अल्फा संस्करण और फिर डेल्टा संस्करण को विश्व स्तर पर प्रभावी बनने का मौका दिया। और वैज्ञानिक उम्मीद करते हैं कि ओमीक्रोन के साथ भी ऐसा ही होगा।
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