Presidential Elections: भाजपा ने उड़ीसा की आदिवासी महिला नेता और झारखंड की पूर्व गवर्नर द्रौपदी मुर्मू पर दांव लगा कर क्या वास्तव में कोई ऐसा ट्रंप कार्ड चला है, जो भाजपा के लिए आने वाले चुनावों में सफलता की नई इबारत लिखने वाला है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा ने अनुसूचित जनजाति की महिला का नाम आगे करके न सिर्फ राजनीतिक बल्कि सामाजिक निशाने भी साध लिए हैं। जिसका असर पार्टी को आने वाले विधानसभा से लेकर लोकसभा चुनावों (Presidential Elections) में तो दिखना तय माना ही जा रहा है, साथ ही पार्टी की छवि राजनैतिक ही नहीं बल्कि समाज में एक विशेष जाति समुदाय के लोगों को आगे बढ़ाने की भी बन रही है। जो भाजपा को एक विशेष राजनीतिक ताने-बाने से हटकर सामाजिक सरोकार की ओर भी बढ़ा रही है।
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11 करोड़ आदिवासियों पर छोड़ी छाप
भाजपा ने उड़ीसा से अनुसूचित जनजाति समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू के साथ न सिर्फ उड़ीसा में अपनी पहुंच और पकड़ मजबूत की है। बल्कि देश की तकरीबन 11 करोड़ से ज्यादा आदिवासी समुदाय में अपनी अलग छाप छोड़ने का प्रयास भी किया है। आदिवासियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए बनाए गए राष्ट्रीय आयोग के पूर्व सदस्य अर्जुनराम गौंड कहते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के नाम को देश के सबसे पिछड़े समुदाय को आगे लाने की प्रक्रिया के तौर पर देखा जाना चाहिए। अर्जुन कहते हैं कि इसमें जो लोग राजनीति तलाश रहे हैं दरअसल वे लोग देश के सबसे पिछड़े समुदाय के लोगों को आगे आने और उनमें सकारात्मकता का अहसास कराने से रोकना चाहते हैं। गौंड कहते हैं कि भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू के नाम से राजनैतिक दांव चला या नहीं, यह चर्चा का विषय होना ही नहीं चाहिए। वह कहते हैं कि किसी पार्टी ने पहली बार आदिवासी और उसमें भी महिला को देश की राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर उतारा है। यह इस समाज के लिए न सिर्फ सम्मान की बात है बल्कि देश की समरूपता को भी दर्शाता है।
राजनैतिक विश्लेषक अमलेंदु प्रकाश कहते हैं कि द्रौपदी मुर्मू (Presidential Elections) के नाम से भाजपा ने आने वाले विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ा पासा फेंका है। प्रकाश के मुताबिक भाजपा ने न सिर्फ उड़ीसा बल्कि देश के सभी आदिवासी प्रदेशों में अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए संदेश देना शुरू कर दिया है। उड़ीसा, मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों में आदिवासियों की अच्छी खासी तादाद है। इनमें से कुछ राज्यों में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव भी हैं। इसलिए द्रौपदी मुर्मू के नाम से देश के तकरीबन 11 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले आदिवासी राज्यों में भाजपा का वोट बैंक मजबूत माना जा सकता है।
आपसी समरूपता की निशानी
राजनीतिक विश्लेषक ओम प्रकाश पवार कहते हैं कि भाजपा सिर्फ विधानसभा के चुनाव ही नहीं बल्कि लोकसभा के चुनावों में भी द्रौपदी मुर्मू की विजय के साथ बहुत खुश रखने की कोशिश करेंगी। पवार कहते हैं दरअसल भाजपा ने आदिवासी समुदाय की महिला को आगे करके राजनैतिक हलकों के अलावा समाज के गैर आदिवासी समुदाय में भी जबरदस्त तरीके से संदेश देने की कोशिश की है। वे कहते हैं कि जिस समुदाय के लोगों को पहले की राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रपति जैसे पद का उम्मीदवार नहीं घोषित करती थीं, अगर आज भाजपा उसी आदिवासी समुदाय की महिला को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाती है, तो इसे एक आपसी समरूपता की निशानी के तौर पर देखा जाना चाहिए।
भाजपा वाली है हमेशा चौंकाने वाले नाम
राजनीतिक विश्लेषक और चुनावों में सर्वे करने वाली एक प्रमुख एजेंसी से जुड़े हरीश टम्टा कहते हैं कि द्रौपदी मुर्मू के नाम को भाजपा की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाए जाने की पेशकश हैरान करने वाली नहीं है। हरीश के मुताबिक भाजपा हमेशा से चौंकाने वाले ही नाम सामने लेकर आती है। उनका कहना है कि द्रौपदी मुर्मू के बहाने भाजपा ने दो चीजों में स्पष्ट रूप से संदेश दिया है। एक तो भाजपा ने समाज के उस आदिवासी समुदाय को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर सामने रखने की कोशिश की है, जो पूरी दुनिया में सबसे पिछड़े माने जाते हैं। भाजपा ने आदिवासी समुदाय को तो जोड़ा ही है, बल्कि उसके साथ महिला आदिवासी को राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया है। यह महिलाओं की सशक्त क्षमता को भी प्रदर्शित करते हुए अपनी पार्टी से जोड़ने का एक निश्चित तौर पर प्रयास है।
हरीश के मुताबिक इसके राजनीतिक मायने भी बिल्कुल स्पष्ट हैं। खासतौर से उड़ीसा में होने वाले विधानसभा के चुनावों (Presidential Elections) से लेकर मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में जहां पर आदिवासियों की अधिकता है, उनसे सीधे कनेक्ट किया है। इसके अलावा पूर्वोत्तर में भी मिजोरम जैसे राज्यों में जहां आदिवासियों की बहुलता है उनसे भी सीधे कनेक्ट करने की पूर्वोत्तर के राज्यों में भी एक कोशिश मानी जा सकती है। हरीश कहते हैं कि पहले कयास लगाए जा रहे थे कि राष्ट्रपति पद पर संभवतया दक्षिण से कोई व्यक्ति भाजपा की ओर से प्रत्याशी बनेगा। क्योंकि आगामी लोकसभा के चुनावों के लिहाज से दक्षिण भारत के प्रत्याशी को सामने लाकर वहां के राजनीतिक समीकरणों को साधा जा सकता था। लेकिन भाजपा ने राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी में इस तरीके का न कोई प्रयास किया और न ही उम्मीदवारी में इसका कोई अक्स झलकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का सीधा-सीधा मानना है कि द्रौपदी मुर्मू के नाम के साथ भाजपा ने राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को बखूबी साधा है।
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